मामला और संदर्भ
Jitendra Kumar Mishra @ Jittu बनाम मध्य प्रदेश राज्य, (2024) 2 SCC 666
उठाया गया मुख्य संवैधानिक/विधिक प्रश्न
क्या केवल मौखिक मृत्यु पूर्व कथन (oral dying declaration) और एक प्रत्यक्षदर्शी की संदेहास्पद उपस्थिति के आधार पर धारा 302/34 IPC के अंतर्गत दोषसिद्धि की जा सकती है?
न्यायालय का निर्णय और विधिक सिद्धांत
- धारा 302/34 IPC के अंतर्गत अभियुक्त की दोषसिद्धि का आधार मृतक द्वारा मौखिक रूप से अपने भाई (शिकायतकर्ता) और माता को दिया गया मृत्यु पूर्व कथन तथा एक प्रत्यक्षदर्शी की गवाही था।
- न्यायालय ने कहा कि मृत्यु पूर्व कथन तभी विश्वसनीय माना जा सकता है जब वह स्वतंत्र और सशक्त साक्ष्य द्वारा पुष्ट (corroborated) हो। केवल मौखिक रूप में किसी करीबी को कथन दिया गया हो, और उसे अन्य साक्ष्य से समर्थन न मिले, तो उसे स्वतः सत्य नहीं माना जा सकता।
- न्यायालय ने प्रत्यक्षदर्शी की उपस्थिति पर भी गंभीर संदेह व्यक्त किया। जब उसकी घटना स्थल पर उपस्थिति संदेहास्पद हो, तो उसकी अकेली गवाही के आधार पर दोषसिद्धि करना विधिसम्मत नहीं होगा।
- इन परिस्थितियों में अभियोजन पक्ष संशय से परे प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पाया, अतः अभियुक्त को संदेह का लाभ (Benefit of Doubt) देते हुए दोषमुक्त किया गया।
प्रासंगिक विधिक प्रावधान
- Section 302 IPC – हत्या का दंड
- Section 34 IPC – सामान्य अभिप्राय से किए गए कार्यों की संयुक्त दायित्वता
- Indian Evidence Act, Section 32(1) – मृत्यु पूर्व कथन (dying declaration)
- Established principle – यदि साक्ष्य संदेहास्पद हो, तो अभियुक्त को संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए
न्यायसम्मत निष्कर्ष
Jitendra Kumar Mishra @ Jittu बनाम राज्य मध्य प्रदेश में सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि जब अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत मृत्यु पूर्व कथन असत्यापित हो, और प्रत्यक्षदर्शी की उपस्थिति संदिग्ध हो, तब दोषसिद्धि बनाए रखना न्यायसंगत नहीं होता।
यह निर्णय पुनः पुष्टि करता है कि भारतीय आपराधिक विधि का मूल सिद्धांत है – “सौ दोषियों को छूट मिल जाए, पर एक निर्दोष को दंडित नहीं किया जाना चाहिए”।
अतः संदेह का लाभ आरोपी को देना विधिक और नैतिक रूप से दोनों दृष्टियों से अनिवार्य है।