मामला और संदर्भ
Brij Narayan Shukal (मृतक) LRs द्वारा बनाम Sudesh Kumar @ Suresh Kumar (मृतक) LRs द्वारा एवं अन्य, (2024) 2 SCC 590
उठाया गया मुख्य संवैधानिक/विधिक प्रश्न
क्या किसी संपत्ति के पूर्ववर्ती स्वामी के किरायेदार उस संपत्ति के स्थानांतरण (transfer) से पहले से प्रतिकूल कब्जे (adverse possession) का दावा नये स्वामी के विरुद्ध कर सकते हैं?
न्यायालय का निर्णय और विधिक सिद्धांत
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि मूल स्वामी के किरायेदारों का कब्जा “स्वीकृत” (permissive possession) होता है और वे स्थानांतर के पूर्व प्रतिकूल कब्जे का दावा नहीं कर सकते।
- प्रतिकूल कब्जा का दावा केवल उसी अवस्था में उत्पन्न हो सकता है जब किरायेदार नये स्वामी के विरुद्ध स्पष्ट रूप से स्वामित्व का विरोध करता हो, और वह विरोध केवल स्वामित्व के वैध स्थानांतरण के पश्चात ही माना जाएगा।
- इस प्रकार, स्थानांतर की तिथि से पूर्व किरायेदारों का कब्जा नये स्वामी के विरुद्ध प्रतिकूल नहीं माना जा सकता, क्योंकि उस समय तक कोई स्वत्व-विवाद (title dispute) उत्पन्न ही नहीं हुआ होता।
- अतः प्रतिकूल कब्जा गिनने की समयावधि (limitation period) भी केवल उस तिथि से प्रारंभ होती है, जब स्वत्व वास्तविक रूप से नये स्वामी को स्थानांतरित हुआ हो।
प्रासंगिक विधिक प्रावधान
- Law of Adverse Possession – वैध स्वामित्व के प्रतिकूल और निरंतर कब्जा यदि 12 वर्षों तक निर्विरोध चला हो, तो अधिकार उत्पन्न हो सकता है।
- Transfer of Property Act, 1882 – स्वामित्व का स्थानांतरण और किरायेदारी की प्रकृति।
- Limitation Act, 1963 – Article 65 – प्रतिकूल कब्जे का दावा 12 वर्षों में जब स्वत्व विवाद उत्पन्न होता है।
न्यायसम्मत निष्कर्ष
Brij Narayan Shukal v. Sudesh Kumar में सुप्रीम कोर्ट ने दृढ़ रूप से कहा कि किरायेदारों का कब्जा जब तक वैध रूप से अनुमत है, तब तक वह प्रतिकूल नहीं हो सकता, और यदि स्वामी का स्थानांतरण होता है, तो उसके पश्चात ही प्रतिकूल कब्जा आरंभ हो सकता है — वह भी तब जब किरायेदार नये स्वामी के अधिकार का स्पष्ट रूप से विरोध करता है।
यह निर्णय प्रतिकूल कब्जे के सिद्धांत के दुरुपयोग को रोकता है और किरायेदारी से उत्पन्न “स्वीकृत कब्जा” को विधिक रूप से अलग करता है, जिससे संपत्ति के वैध स्वामियों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित होती है।