मध्यस्थ निर्णय रद्द होने पर भिन्नमत निर्णय (Dissenting Opinion) को पुरस्कार (Award) नहीं माना जा सकता

मामला और संदर्भHindustan Construction Co. Ltd. बनाम भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI), (2024) 2 SCC 613 उठाया गया मुख्य संवैधानिक/विधिक प्रश्नक्या मध्यस्थ पंचाट (Arbitral Tribunal) में किसी एक पंच द्वारा दिए गए भिन्नमत निर्णय (dissenting opinion) को, धारा 34 के अंतर्गत बहुमत के निर्णय (majority award) के रद्द होने की स्थिति में, स्वतः ही वैध […]

Continue Reading

आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरण: मानसिक तत्परता, समीपता और विधिक दोषसिद्धि की कसौटी

मामला और संदर्भMohit Singhal v. State of Uttarakhand, (2024) 1 SCC 417 उठाया गया मुख्य संवैधानिक/विधिक प्रश्नक्या अभियुक्तों के कृत्य भारतीय दंड संहिता की धारा 107 के अंतर्गत “दुष्प्रेरण” (instigation) की परिभाषा में आते हैं जिससे आत्महत्या हेतु प्रेरित करना सिद्ध होता है, और क्या धारा 306 के अंतर्गत दंडनीय अपराध बनता है? बहुमत निर्णयन्यायमूर्ति […]

Continue Reading

राजा की हत्या में पत्नी सोनम रघुवंशी की संलिप्तता उजागर – साक्ष्यों के सामने टूटी, अपराध कबूल किया

मेघालय में हनीमून पर गए नवविवाहित दंपति की यात्रा एक दर्दनाक अपराध कथा में बदल गई जब राजा रघुवंशी की हत्या के मामले में उसकी पत्नी सोनम रघुवंशी ने साजिश में अपनी भूमिका स्वीकार कर ली। पुलिस द्वारा प्रस्तुत पुख्ता डिजिटल और भौतिक साक्ष्यों के आधार पर सोनम ने अपराध कबूल किया और पूछताछ के […]

Continue Reading

धारा 138 एन.आई. एक्ट के अंतर्गत मामलों के शीघ्र निपटान की संवैधानिक समीक्षा

प्रकरण नाम व वाद संख्या:In Re: Expeditious Trial of Cases under Section 138 of N.I. Act, 1881[Suo Motu Writ Petition (Crl.) No. 2 of 2020, (2021) 4 SCC 257] प्रमुख संवैधानिक / विधिक प्रश्न:क्या धारा 138 के अंतर्गत अत्यधिक लंबित मामलों के कारण आपराधिक न्याय प्रणाली पर पड़ रहे प्रतिकूल प्रभाव को दूर करने के […]

Continue Reading

“क्या सूचनाकर्ता ही जांचकर्ता हो सकता है? – एनडीपीएस अधिनियम में निष्पक्षता और न्याय की संवैधानिक कसौटी पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय”

Mukesh Singh v. State (Narcotic Branch of Delhi), [2020] 9 SCR 245Special Leave Petition (Criminal) Diary No. 39528 of 2018 एनडीपीएस मामलों में सूचनाकर्ता द्वारा जांच – निष्पक्षता बनाम वैधानिक अनुमति निर्णायक पीठ: पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ:न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा,न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी,न्यायमूर्ति विनीत सरन,न्यायमूर्ति एम. आर. शाह (मुख्य निर्णय लेखक),न्यायमूर्ति एस. रविंद्र भट। मूल मुद्दा:क्या […]

Continue Reading

निर्णय की वैधता निष्पादन न्यायालय नहीं जांच सकता: सुप्रीम कोर्ट ने आदेश रद्द कर छह माह में निष्पादन का निर्देश दोहराया

Periyammal (Dead) through LRs & Ors. v. V. Rajamani & Anr. etc.[2025] 3 S.C.R. 540 सुप्रीम कोर्ट ने सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश XXI नियम 97 और 101 तथा धारा 47 की व्याख्या करते हुए यह स्पष्ट किया कि निष्पादन न्यायालय का कार्य केवल डिक्री के निष्पादन तक सीमित होता है, वह डिक्री की वैधता […]

Continue Reading

मृत्युकथन में विरोधाभास और पुष्टिकारी साक्ष्य के अभाव में आरोपी दोषमुक्त: सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

Suresh v. State Rep. by Inspector of Police[2025] 3 S.C.R. 317 सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में यह स्पष्ट किया कि मृत्युकथन (dying declaration) के आधार पर दोषसिद्धि केवल तभी टिकाऊ मानी जा सकती है जब वह सुसंगत, पुष्ट और स्वतंत्र साक्ष्यों द्वारा समर्थित हो। यह मामला एक ऐसी महिला की मृत्यु से जुड़ा था, […]

Continue Reading

निजी और अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों के संवैधानिक अधिकार

T.M.A. Pai Foundation & Others v. State of Karnataka & Others, [(2002) 8 SCC 481] – Constitution Bench Judgment decided on October 31, 2002 टी.एम.ए. पाई फाउंडेशन एवं अन्य बनाम कर्नाटक राज्य एवं अन्य, [(2002) 8 SCC 481] – यह संविधान पीठ का निर्णय है, जो 31 अक्टूबर 2002 को पारित किया गया। सारांश:यह ऐतिहासिक […]

Continue Reading

जब तक विधिसम्मत बंटवारा न हो, वादी को उसके वर्तमान कब्जे से वंचित नहीं किया जा सकता

GANGUBAI RAGHUNATH AYARE बनाम GANGARAM SAKHARAM DHURI (मृत) द्वारा प्रतिनिधि और अन्यSCR उद्धरण: [2025] 4 S.C.R. 184निर्णय दिनांक: 17 मार्च 2025न्यायाधीश: माननीय श्री न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाहप्रकरण प्रकार: सिविल अपील /3183/2009निर्णय: अपील का निपटारा किया गयान्यूट्रल सिटेशन: 2025 INSC 355 मुख्य बिंदु (हेडनोट): वाद – आवश्यक पक्षकारों की अनुपस्थिति – ‘V’ (वादी का भाई एवं प्रतिवादी […]

Continue Reading

दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 – धारा 319 – अपराध में दोषी प्रतीत हो रहे अन्य व्यक्तियों को अभियोजन का सामना करने हेतु तलब करने की शक्ति

OMKAR RATHORE & ANR. vs. THE STATE OF MADHYA PRADESH & ANR. SCR Citation: [2025] 1 S.C.R. 266 दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 319 अदालत को यह अधिकार देती है कि अगर ट्रायल के दौरान किसी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ साक्ष्य सामने आते हैं जो शुरू में आरोपी नहीं बनाया गया था, तो उसे भी मुकदमे […]

Continue Reading