न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा नकदी विवाद: जांच रिपोर्ट, महाभियोग प्रस्ताव और आत्मरक्षा के तीन अवसर

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दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के सरकारी आवास के स्टोररूम में मार्च 2025 में बड़ी मात्रा में ₹500 के अधजले नोट मिलने के बाद पूरा न्यायिक तंत्र इस विवाद से हिल गया है। आग लगने की इस घटना के बाद न्यायमूर्ति वर्मा ने किसी भी अवैध नकदी से पल्ला झाड़ लिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय समिति ने विस्तृत जांच कर उन्हें ‘गंभीर दुर्व्यवहार’ का दोषी माना है और उनके खिलाफ महाभियोग की सिफारिश की है।

कैसे हुआ खुलासा?

14 मार्च 2025 की रात दिल्ली में न्यायमूर्ति वर्मा के सरकारी आवास के एक स्टोररूम में आग लगी। दमकल विभाग ने आग बुझाने के बाद वहाँ बड़ी मात्रा में नकदी बरामद की, जो अधजली हालत में पड़ी थी। न्यायमूर्ति वर्मा ने दावा किया कि स्टोररूम घरेलू स्टाफ के इस्तेमाल में था और उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी।

जांच समिति ने क्या कहा?

CJI संजीव खन्ना ने तुरंत एक तीन सदस्यीय समिति गठित की, जिसमें एक सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश, एक हाई कोर्ट मुख्य न्यायाधीश और एक वरिष्ठ विधिज्ञ शामिल थे। समिति ने 55 से अधिक गवाहों के बयान, फोटो और CCTV फुटेज का परीक्षण कर पाया कि यह स्टोररूम न्यायाधीश के प्रभावी नियंत्रण में ही था। जस्टिस वर्मा द्वारा कोई विश्वसनीय सफाई न दे पाना ‘अप्राकृतिक आचरण’ माना गया और समिति ने संसद से उनके महाभियोग की सिफारिश कर दी।

अब आगे क्या होगा?

भारत के संविधान के तहत किसी न्यायाधीश को पद से हटाने के लिए संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाना होता है। प्रस्ताव को पारित करने के लिए दोनों सदनों में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत के साथ-साथ कुल सदस्यों के बहुमत का समर्थन भी जरूरी होता है।

न्यायमूर्ति वर्मा को तीन अवसर

न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को इस संवैधानिक प्रक्रिया के दौरान आत्मरक्षा के तीन अवसर मिलेंगे:
1पहला अवसर: संसद की ओर से गठित विशेषज्ञ समिति जांच करेगी, आरोपों का मसौदा तैयार होगा और वर्मा को उसका जवाब देने का पूरा मौका दिया जाएगा।
2दूसरा अवसर: राज्यसभा या लोकसभा में प्रस्ताव पर बहस के दौरान वर्मा अपनी बात सबसे पहले रख सकेंगे, इसके बाद ही सांसद बहस करेंगे।
3तीसरा अवसर: जांच समिति अपनी अंतिम रिपोर्ट में यदि उनके पक्ष के तथ्य शामिल न करे तो न्यायमूर्ति वर्मा को फिर से स्पष्टीकरण देने का अधिकार होगा।

ऐतिहासिक संदर्भ

• 1993 में पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश वी. रामास्वामी के खिलाफ पहला महाभियोग प्रस्ताव आया था, पर पर्याप्त समर्थन न मिलने से विफल रहा।
• 2011 में कलकत्ता हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति सौमित्र सेन के खिलाफ राज्यसभा में प्रस्ताव पारित हुआ, लेकिन लोकसभा में बहस से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया था।

यह मामला भारतीय न्यायपालिका की स्वतंत्रता और जवाबदेही के संतुलन की परीक्षा है। जांच समिति की सिफारिश के बाद संसद के मानसून सत्र में महाभियोग प्रस्ताव पेश होने की संभावना है। अब देखना होगा कि न्यायमूर्ति वर्मा दिए गए तीन संवैधानिक अवसरों का कैसे इस्तेमाल करते हैं और यह प्रकरण न्यायिक जवाबदेही की दिशा में कैसा दृष्टांत स्थापित करता है।

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