न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा नकदी विवाद: जांच रिपोर्ट, महाभियोग प्रस्ताव और आत्मरक्षा के तीन अवसर

दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के सरकारी आवास के स्टोररूम में मार्च 2025 में बड़ी मात्रा में ₹500 के अधजले नोट मिलने के बाद पूरा न्यायिक तंत्र इस विवाद से हिल गया है। आग लगने की इस घटना के बाद न्यायमूर्ति वर्मा ने किसी भी अवैध नकदी से पल्ला झाड़ लिया, लेकिन सुप्रीम […]

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High Court Bar Association, Allahabad v. State of UP and Ors., [2024 (3) ADJ 295 (SC)]संविधान पीठ का निर्णय

मुख्य प्रश्न क्या उच्च न्यायालय द्वारा पारित अंतरिम स्थगन आदेश (stay orders) केवल समयावधि के समाप्त हो जाने से स्वतः समाप्त (automatic vacation) हो सकते हैं? संविधानिक धाराएँ सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (संविधान पीठ) न्यायालय का निष्कर्ष यह निर्णय न्यायिक स्वतंत्रता, न्यायालयीय अनुशासन, तथा न्यायिक प्रक्रिया की गरिमा को बनाए रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण […]

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मध्यस्थ निर्णय रद्द होने पर भिन्नमत निर्णय (Dissenting Opinion) को पुरस्कार (Award) नहीं माना जा सकता

मामला और संदर्भHindustan Construction Co. Ltd. बनाम भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI), (2024) 2 SCC 613 उठाया गया मुख्य संवैधानिक/विधिक प्रश्नक्या मध्यस्थ पंचाट (Arbitral Tribunal) में किसी एक पंच द्वारा दिए गए भिन्नमत निर्णय (dissenting opinion) को, धारा 34 के अंतर्गत बहुमत के निर्णय (majority award) के रद्द होने की स्थिति में, स्वतः ही वैध […]

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स्वीकृत किरायेदारी से उत्पन्न कब्जा पूर्ववर्ती स्वामी के स्थानांतर के बाद ही प्रतिकूल कब्जे (Adverse Possession) में बदल सकता है

मामला और संदर्भBrij Narayan Shukal (मृतक) LRs द्वारा बनाम Sudesh Kumar @ Suresh Kumar (मृतक) LRs द्वारा एवं अन्य, (2024) 2 SCC 590 उठाया गया मुख्य संवैधानिक/विधिक प्रश्नक्या किसी संपत्ति के पूर्ववर्ती स्वामी के किरायेदार उस संपत्ति के स्थानांतरण (transfer) से पहले से प्रतिकूल कब्जे (adverse possession) का दावा नये स्वामी के विरुद्ध कर सकते […]

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मृत्यु पूर्व कथन यदि स्वतंत्र रूप से पुष्ट न हो तो दोषसिद्धि नहीं – साक्ष्य में संदेह होने पर लाभ अभियुक्त को

मामला और संदर्भJitendra Kumar Mishra @ Jittu बनाम मध्य प्रदेश राज्य, (2024) 2 SCC 666 उठाया गया मुख्य संवैधानिक/विधिक प्रश्नक्या केवल मौखिक मृत्यु पूर्व कथन (oral dying declaration) और एक प्रत्यक्षदर्शी की संदेहास्पद उपस्थिति के आधार पर धारा 302/34 IPC के अंतर्गत दोषसिद्धि की जा सकती है? न्यायालय का निर्णय और विधिक सिद्धांत प्रासंगिक विधिक […]

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वाद में पक्षकार और साक्षी में कोई विधिक अंतर नहीं – जिरह के लिए पक्षकार द्वारा दस्तावेज प्रस्तुत करना विधिसम्मत

मामला और संदर्भMohammed Abdul Wahid बनाम निलोफ़र एवं अन्य, (2024) 2 SCC 144 उठाया गया मुख्य संवैधानिक/विधिक प्रश्न(1) क्या सिविल प्रक्रिया संहिता में “वाद का पक्षकार” (party to a suit) और “साक्षी” (witness) में कोई भिन्नता है?(2) क्या “वादी या प्रतिवादी का साक्षी” जैसी शब्दावली यह संकेत देती है कि वादी या प्रतिवादी जब स्वयं […]

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पंजीकरण अधिनियम की धारा 47: विक्रय विलेख की प्रभावी तिथि निष्पादन की तिथि मानी जाएगी, न कि पंजीकरण की तिथि

मामला और संदर्भKanwar Raj Singh (मृतक) द्वारा उसके विधिक उत्तराधिकारी बनाम GEJO (मृतक) द्वारा उसके विधिक उत्तराधिकारी एवं अन्य, (2024) 2 SCC 416 उठाया गया मुख्य संवैधानिक/विधिक प्रश्नक्या किसी विक्रय विलेख (Sale Deed) की वैधानिक प्रभावशीलता (date of operation) उसके निष्पादन (execution) की तिथि से मानी जाएगी या पंजीकरण (registration) की तिथि से? और क्या […]

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आदेश 47 सीपीसी के तहत पुनर्विचार याचिका की सीमाएँ और आधार – स्पष्ट त्रुटि के बिना पुनः विचार अस्वीकार्य

मामला और संदर्भSanjay Kumar Agarwal बनाम State Tax Officer, (2024) 2 SCC 362 उठाया गया मुख्य संवैधानिक/विधिक प्रश्नक्या कोई निर्णय केवल इसलिए पुनर्विचार हेतु खोला जा सकता है क्योंकि याचिकाकर्ता उससे असहमत है? आदेश 47 नियम 1 सीपीसी के तहत पुनर्विचार किन सीमाओं और आधारों पर किया जा सकता है? न्यायालय का निर्णय और विधिक […]

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सजा में दया याचिका पर रोक लगाने का अधिकार केवल उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय को – सत्र न्यायालय द्वारा 20 वर्षों तक दया से वंचित रखने का आदेश अमान्य

मामला और संदर्भ Ravinder Singh बनाम राज्य सरकार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, (2024) 2 SCC 323 उठाया गया मुख्य संवैधानिक/विधिक प्रश्न क्या किसी अपर सत्र न्यायालय (Additional Sessions Judge) के पास यह अधिकार है कि वह दया याचिका या क्षमादान (clemency) की प्रक्रिया पर यह प्रतिबंध लगा सके कि आरोपी को कम से कम 20 […]

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क्या किशोर न्याय बोर्ड वयस्क को आरोपी बनाने हेतु धारा 319 दंप्रसं के अंतर्गत समन कर सकता है?

क्या किशोर न्याय बोर्ड (Juvenile Justice Board – JJB) के पास ऐसी कोई विधिक शक्ति है कि वह दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 319 के अंतर्गत किसी ऐसे व्यक्ति को, जो किशोर नहीं है, अभियुक्त के रूप में समन कर सके। प्रावधानों का विश्लेषण:धारा 4 दंप्रसं स्पष्ट करती है कि भारतीय दंड संहिता अथवा अन्य […]

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