Category: विधिक समाचार
वाद में पक्षकार और साक्षी में कोई विधिक अंतर नहीं – जिरह के लिए पक्षकार द्वारा दस्तावेज प्रस्तुत करना विधिसम्मत
मामला और संदर्भMohammed Abdul Wahid बनाम निलोफ़र एवं अन्य, (2024) 2 SCC 144 उठाया गया मुख्य संवैधानिक/विधिक प्रश्न(1) क्या सिविल प्रक्रिया संहिता में “वाद का पक्षकार” (party to a suit) और “साक्षी” (witness) में कोई भिन्नता है?(2) क्या “वादी या प्रतिवादी का साक्षी” जैसी शब्दावली यह संकेत देती है कि वादी या प्रतिवादी जब स्वयं […]
Continue Readingपंजीकरण अधिनियम की धारा 47: विक्रय विलेख की प्रभावी तिथि निष्पादन की तिथि मानी जाएगी, न कि पंजीकरण की तिथि
मामला और संदर्भKanwar Raj Singh (मृतक) द्वारा उसके विधिक उत्तराधिकारी बनाम GEJO (मृतक) द्वारा उसके विधिक उत्तराधिकारी एवं अन्य, (2024) 2 SCC 416 उठाया गया मुख्य संवैधानिक/विधिक प्रश्नक्या किसी विक्रय विलेख (Sale Deed) की वैधानिक प्रभावशीलता (date of operation) उसके निष्पादन (execution) की तिथि से मानी जाएगी या पंजीकरण (registration) की तिथि से? और क्या […]
Continue Readingनिर्णायक सीमाएं: मध्यस्थीय निर्णय में तथ्यों का पुनर्मूल्यांकन नहीं किया जा सकता
मामला और संदर्भReliance Infrastructure Ltd. v. State of Goa, (2024) 1 SCC 479 उठाया गया मुख्य संवैधानिक/विधिक प्रश्नक्या मध्यस्थता अधिनियम, 1996 की धारा 34 के अंतर्गत न्यायालय को तथ्यों के पुनः मूल्यांकन का अधिकार है या नहीं? और क्या “patent illegality” के आधार पर निर्णय को चुनौती दी जा सकती है जब वह भारतीय विधि […]
Continue Readingराज्यों द्वारा तंबाकू युक्त गुटखा पर विक्रय कर लगाने की वैधता और अनुच्छेद 145 की व्याख्या
मामले का नाम और वाद संख्या:M/s Trimurthi Fragrances (P) Ltd. Through Its Director Shri Pradeep Kumar Agrawal v. Government of N.C.T. of Delhi Through Its Principal Secretary (Finance) & Others, Civil Appeal No. 8486 of 2011, निर्णय दिनांक 19 सितंबर 2022([2022] 15 S.C.R. 516) प्रमुख संवैधानिक एवं विधिक प्रश्न: बहुमत निर्णय (इंदिरा बैनर्जी, सूर्यकांत, एम.एम. […]
Continue Readingअनुच्छेद 15(4), 16(4) में आरक्षण की सीमा और मराठा आरक्षण अधिनियम की संवैधानिकता का परीक्षण
मामला: Dr. Jaishri Laxmanrao Patil v. Chief Minister & Ors., Civil Appeal No. 3123 of 2020, [2021] 15 SCR 715 मुख्य संवैधानिक प्रश्न:क्या महाराष्ट्र राज्य द्वारा मराठा समुदाय को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग (SEBC) घोषित कर 50% की सीमा से अधिक आरक्षण प्रदान करना संविधान के अनुच्छेद 14, 15(4), 16(4) और 342A […]
Continue Readingन्यायिक निष्पक्षता और पुनर्विचार में न्यायाधीश की पुनः भागीदारी की वैधता पर संविधान पीठ का निर्णय
INDORE DEVELOPMENT AUTHORITY v. MANOHAR LAL & ORS. ETC.[2019] 15 SCR 1085 | Special Leave Petition (C) Nos. 9036–9038 of 2016इस वाद में प्रमुख मुद्दा यह था कि क्या कोई न्यायाधीश, जिसने पहले किसी छोटे पीठ में किसी विधिक प्रश्न पर निर्णय दिया हो, वह उस ही मामले में उस निर्णय की पुनर्समीक्षा हेतु गठित […]
Continue Readingराम जन्मभूमि–बाबरी मस्जिद विवाद: विधिक उत्तरदायित्व और ऐतिहासिक न्याय
(M. Siddiq (Dead) through LRs बनाम महंत सुरेश दास व अन्य, 2019)[संविधान पीठ – न्यायमूर्ति रंजन गोगोई (CJI), न्यायमूर्ति एस. ए. बोबडे, न्यायमूर्ति डॉ. डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नज़ीर] इस वाद का केंद्रीय मुद्दा अयोध्या नगर में स्थित 1500 वर्ग गज भूमि के स्वामित्व को लेकर था, जिस पर हिंदू […]
Continue Reading“आरक्षण में योग्यता बनाम श्रेणीबद्धता: क्षैतिज और ऊर्ध्व आरक्षण में खुली श्रेणी में चयन का संवैधानिक मानदंड”
SAURAV YADAV & ORS. v. STATE OF UTTAR PRADESH & ORS. (2020) 11 SCR 281 | Misc. Appl. No. 2641/2019 in SLP (C) No. 23223/2018 मुख्य मुद्दा:उत्तर प्रदेश पुलिस में 2013 की भर्ती में ‘OBC महिला’ और ‘SC महिला’ उम्मीदवारों द्वारा ‘जनरल महिला’ श्रेणी में चयन का दावा किया गया था, क्योंकि उनकी अंक संख्या […]
Continue Readingअदालती आश्वासन का उल्लंघन गंभीर अवमानना: सुप्रीम कोर्ट ने आंशिक संशोधन के साथ अवमानना ठहराई
Smt. Lavanya C & Anr. v. Vittal Gurudas Pai (Since Deceased) by LRs & Ors. [2025] 3 S.C.R. 450 सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि यदि कोई पक्ष न्यायालय को वकील के माध्यम से कोई आश्वासन देता है और उसे न्यायिक आदेश का रूप दे दिया जाता है, तो उसका […]
Continue Readingबिना पर्याप्त कारण के निरोध आदेश असंगत: सुप्रीम कोर्ट ने COFEPOSA के तहत हिरासत को रद्द किया
Joyi Kitty Joseph v. Union of India & Ors.[2025] 3 S.C.R. 419 सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति को COFEPOSA अधिनियम, 1974 की धारा 3(1)(i) से (iv) के तहत निरुद्ध करते समय प्रशासनिक प्राधिकारी को यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि क्यों पूर्व में दी गई ज़मानत की शर्तें […]
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