Joyi Kitty Joseph v. Union of India & Ors.
[2025] 3 S.C.R. 419
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति को COFEPOSA अधिनियम, 1974 की धारा 3(1)(i) से (iv) के तहत निरुद्ध करते समय प्रशासनिक प्राधिकारी को यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि क्यों पूर्व में दी गई ज़मानत की शर्तें आगामी अपराधों को रोकने में अपर्याप्त हैं। यदि ऐसा संतोषजनक कारण नहीं दर्शाया गया हो, तो निरोध आदेश न्यायसंगत नहीं माना जा सकता।
मामले में अपीलकर्ता को विदेशी मुद्रा तस्करी के आरोप में मजिस्ट्रेट द्वारा 16 अप्रैल 2024 को कठोर शर्तों के साथ ज़मानत दी गई थी। इसके बावजूद, निरोधक प्राधिकारी द्वारा उसी आरोप को आधार बनाकर COFEPOSA अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत निरोध आदेश पारित कर दिया गया। आदेश में यह नहीं बताया गया कि पहले से लागू सशर्त ज़मानत भविष्य में तस्करी जैसे अपराधों को रोकने में क्यों अक्षम थी।
सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि निरोध आदेश के लिए केवल यह दिखा देना पर्याप्त नहीं है कि व्यक्ति पूर्व में तस्करी में संलिप्त रहा है, बल्कि यह भी स्पष्ट करना होता है कि उसकी रिहाई से भविष्य में ऐसी गतिविधियों की आशंका है और न्यायालय द्वारा लगाए गए प्रतिबंध पर्याप्त नहीं हैं। जब तक यह संतोषजनक रूप से विश्लेषण नहीं किया जाता, तब तक निरोध आदेश को वैध नहीं माना जा सकता।
अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि स्वतंत्रता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और किसी व्यक्ति को केवल पूर्ववर्ती कार्यों के आधार पर अनिश्चितकाल तक हिरासत में नहीं रखा जा सकता, विशेषकर तब जब उस व्यक्ति को विधिक प्रक्रिया द्वारा सशर्त रिहाई मिल चुकी हो। ऐसे मामलों में प्रशासनिक संतोष का आधार ठोस, वस्तुनिष्ठ और स्पष्ट रूप से रिकॉर्ड पर होना चाहिए।
उक्त तथ्यों के मद्देनज़र, सुप्रीम कोर्ट ने निरोध आदेश को मनमाना, असंगत और विधिसम्मत आवश्यकताओं से रहित पाया। न्यायालय ने इसे रद्द करते हुए अपीलकर्ता की तत्काल रिहाई का आदेश दिया। यह निर्णय एक बार पुनः यह सिद्ध करता है कि रक्षात्मक निरोध को संवैधानिक सीमाओं के भीतर ही रखा जाना चाहिए और कार्यपालिका को मौलिक अधिकारों के हनन का असीमित अधिकार नहीं है।