प्रकरण का नाम और संदर्भ:
Janhit Abhiyan v. Union of India, [2022] 14 S.C.R. 1, Writ Petition (Civil) No. 55 of 2019, निर्णय दिनांक: 07 नवंबर 2022
उठाए गए प्रमुख संवैधानिक प्रश्न:
- क्या केवल आर्थिक आधार पर विशेष प्रावधान (reservation) करना संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन है?
- क्या निजी गैर-सहायता प्राप्त संस्थानों में प्रवेश हेतु विशेष प्रावधान करना मूल ढांचे का उल्लंघन है?
- क्या SC/ST/OBC (non-creamy layer) को EWS आरक्षण से बाहर करना समानता संहिता का उल्लंघन है?
बहुमत का निर्णय (न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला):
सुप्रीम कोर्ट ने 3:2 के बहुमत से 103वां संविधान संशोधन वैध ठहराया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि संविधान में अनुच्छेद 15(6) और 16(6) के तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए अधिकतम 10% आरक्षण की व्यवस्था, संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन नहीं करती।
न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी ने कहा कि आरक्षण एक सक्षम विधिक साधन है जो राज्य को समावेशी न्याय की दिशा में आगे बढ़ने में मदद करता है। उन्होंने यह भी कहा कि आर्थिक आधार पर आरक्षण मूल अधिकारों या समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं करता, क्योंकि यह ‘compensatory discrimination’ के सिद्धांत पर आधारित है। उन्होंने स्पष्ट किया कि 50% आरक्षण की सीमा कोई कठोर नियम नहीं है और यह सीमा केवल अनुच्छेद 15(4), 15(5), और 16(4) के तहत लागू होती है।
न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी ने इस संशोधन को संसद की सकारात्मक कार्यवाही करार दिया। उन्होंने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को एक अलग श्रेणी मानना तर्कसंगत है और यह अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता। उन्होंने यह भी कहा कि समानों को समान और असमानों को असमान व्यवहार देना ही न्याय है।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला ने यह जोड़ा कि आरक्षण एक साधन है, न कि लक्ष्य। उन्होंने कहा कि समय आ गया है कि आरक्षण की समीक्षा की जाए, ताकि यह स्थायी अधिकार न बन जाए।
अल्पमत की राय (न्यायमूर्ति एस. रविन्द्र भट, मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित सहमत):
न्यायमूर्ति भट ने माना कि आर्थिक आधार पर आरक्षण अपने आप में असंवैधानिक नहीं है, लेकिन जिस रूप में यह संशोधन प्रस्तुत किया गया है, उसमें SC/ST/OBC को बाहर करना मूल संरचना का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि यह संशोधन ‘non-exclusion’ के सिद्धांत और समानता संहिता के विरुद्ध है। उन्होंने अनुच्छेद 15(6) और 16(6) को असंवैधानिक और अमान्य ठहराया।
प्रासंगिक संवैधानिक प्रावधान और निर्णय:
संविधान का अनुच्छेद 15 और 16 संशोधित कर अनुच्छेद 15(6) और 16(6) जोड़े गए, जिनमें EWS के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है।
महत्वपूर्ण संदर्भ निर्णय: Kesavananda Bharati v. State of Kerala (1973), Indra Sawhney v. Union of India (1992), M. Nagaraj v. Union of India (2006)
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट की बहुमत राय में 103वां संविधान संशोधन संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता। आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्गों को 10% आरक्षण देने का प्रावधान संविधान सम्मत और न्यायोचित ठहराया गया। अल्पमत ने इसे वर्गीय बहिष्कार और समानता सिद्धांत का उल्लंघन माना।