मामले का नाम और वाद संख्या:
M/s Trimurthi Fragrances (P) Ltd. Through Its Director Shri Pradeep Kumar Agrawal v. Government of N.C.T. of Delhi Through Its Principal Secretary (Finance) & Others, Civil Appeal No. 8486 of 2011, निर्णय दिनांक 19 सितंबर 2022
([2022] 15 S.C.R. 516)
प्रमुख संवैधानिक एवं विधिक प्रश्न:
- क्या तंबाकू और गुटखा युक्त पान मसाला, जो कि ADE अधिनियम, 1957 की अनुसूची प्रथम में सूचीबद्ध है, राज्य कराधान कानूनों जैसे दिल्ली विक्रय कर अधिनियम, 1975, उत्तर प्रदेश व्यापार कर अधिनियम, 1948 या तमिलनाडु सामान्य विक्रय कर अधिनियम, 1959 के अंतर्गत बिक्री कर के लिए उत्तरदायी है?
- क्या Kothari Products और Agra Belting मामलों में कानूनी विरोध है जिससे संविधान पीठ के विचार की आवश्यकता उत्पन्न होती है?
- अनुच्छेद 145(5) और न्यायिक मिसाल (precedent) की वैधता की कसौटी क्या होनी चाहिए?
बहुमत निर्णय (इंदिरा बैनर्जी, सूर्यकांत, एम.एम. सुंदरेश, सुधांशु धूलिया, जे.):
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ADE अधिनियम, 1957 का उद्देश्य कुछ विशेष वस्तुओं (जैसे तंबाकू) पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क के अतिरिक्त शुल्क लगाना है और उन पर राज्य विक्रय कर नहीं लगाया जा सकता यदि वे उक्त अधिनियम के अधीन कर योग्य हैं। इस सिद्धांत की पुष्टि Kothari Products Ltd. v. State of A.P. और Godfrey Philips India Ltd. v. State of U.P. जैसे निर्णयों द्वारा की गई थी। इस कारण, किसी भी राज्य द्वारा गुटखा या तंबाकू युक्त पान मसाले पर अलग से विक्रय कर लगाना वैध नहीं है।
इसके विपरीत Agra Belting Works मामला एक राज्य के विशेष विक्रय कर अधिनियम (जैसे यूपी कर अधिनियम, 1948) की धारा 3A और 4 के बीच संबंध पर आधारित था। अतः दोनों निर्णयों में कोई विरोधाभास नहीं है, इसलिए संविधान पीठ को संदर्भ देना विधिसम्मत नहीं था।
संवैधानिक व्याख्या (अनुच्छेद 145 और बेंच शक्ति):
न्यायालय ने Dr. Jaishri Laxmanrao Patil v. State of Maharashtra (2021) के संविधान पीठ निर्णय के आधार पर पुनः पुष्टि की कि न्यायिक दृष्टिकोण में निर्णायक तत्व जजों की संख्या नहीं बल्कि बेंच की शक्ति होती है। इसलिए एक बड़ी बेंच का बहुमत निर्णय छोटी या समान बेंच पर बाध्यकारी होता है, भले ही बड़ी बेंच में मतों का विभाजन कम अंतर से हुआ हो।
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता (सहमति):
उन्होंने भी बहुमत निर्णय का समर्थन किया और विस्तार से बताया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 145(5) के अनुसार बहुमत का निर्णय ही न्यायालय का निर्णय माना जाएगा। 42वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया अनुच्छेद 144A, जिसे बाद में निरस्त कर दिया गया, यह भी दर्शाता है कि संविधान निर्माताओं ने बहुमत निर्णय के महत्व को स्वीकार किया था। उन्होंने कहा कि बेंच की संख्या ही बाध्यकारी प्रकृति को निर्धारित करती है न कि निर्णय में सम्मिलित जजों की व्यक्तिगत गिनती।
उपयुक्त विधिक प्रावधान और न्याय दृष्टांत:
- Additional Duties of Excise (Goods of Special Importance) Act, 1957
- Central Excise Act, 1944
- Article 145(5), Constitution of India
- Kothari Products Ltd. v. State of A.P., (2000) 9 SCC 263
- Agra Belting Works, (1987) 3 SCC 140
- Godfrey Phillips India Ltd. v. State of U.P., (2005) 2 SCC 515
- Dr. Jaishri Laxmanrao Patil v. Chief Minister, (2021) 8 SCC 1
- Union of India v. Raghubir Singh, (1989) 2 SCC 754
- Central Board of Dawoodi Bohra Community v. State of Maharashtra, (2005) 2 SCC 673
निष्कर्ष:
न्यायालय ने यह निर्णय देते हुए संघ सूची (Entry 84) और राज्य सूची (Entry 54) के मध्य शक्ति-संतुलन को बरकरार रखा और स्पष्ट किया कि:
“Once goods are chargeable under the ADE Act, the State cannot levy sales tax on the same goods under a State enactment.”
न्यायालय ने निर्णय दिया कि ADE अधिनियम के अंतर्गत सूचीबद्ध वस्तुएं जैसे गुटखा या तंबाकू पर राज्य सरकारें अपने कराधान अधिनियमों के अंतर्गत बिक्री कर नहीं लगा सकतीं। इसके साथ ही न्यायालय ने न्यायिक अनुकरण सिद्धांत की पुष्टि की कि बड़ी बेंच का निर्णय बाध्यकारी होता है, चाहे उसमें बहुमत का अंतर कम ही क्यों न हो।