एकाधिक मृत्यु पूर्व कथनों में विरोधाभास के प्रभाव पर निर्णय: क्रूरता के आरोप से दोषमुक्ति

न्यायिक निर्णय

राजाराम बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्यगण
(Criminal Appeal No. 2311 of 2022, निर्णय दिनांक: 16 दिसंबर 2022)
[2022] 16 S.C.R. 99
न्यायाधीश: एस. रविंद्र भाट और सुधांशु धूलिया

प्रमुख संवैधानिक/कानूनी प्रश्न:
क्या एकाधिक मृत्यु पूर्व कथनों (dying declarations) में विरोधाभास की स्थिति में मात्र एक कथन के आधार पर आरोपी की दोषसिद्धि न्यायोचित मानी जा सकती है, विशेषतः जब उस कथन को उच्च न्यायालय अविश्वसनीय ठहराए?

बहुमत निर्णय (न्यायमूर्ति एस. रविंद्र भाट द्वारा):
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि मृत्यु पूर्व कथन की वैधता और उपयोगिता पूर्ण परिस्थितियों, साक्ष्य की विश्वसनीयता तथा अभिलेखों में निहित तथ्यों पर निर्भर करती है। इस प्रकरण में मृतका पुष्पा द्वारा दो मृत्यु पूर्व कथन दिए गए—पहला (प्रद. प.-11) नायब तहसीलदार द्वारा डॉक्टर की उपस्थिति में और दूसरा (प्रद. प.-26) पुलिस अधिकारी द्वारा बिना डॉक्टर की पुष्टि के। पहले कथन में पति राजाराम का उल्लेख नहीं था, जबकि दूसरे कथन में उसे और अन्य ससुराल वालों को दहेज के लिए प्रताड़ना का दोषी ठहराया गया।

हालाँकि, उच्च न्यायालय ने दूसरे कथन को यह कहकर अविश्वसनीय माना कि उसका रिकॉर्डिंग डॉक्टर की पुष्टि के बिना हुई और उसमें उल्लेख है कि मृतका की स्थिति “बहुत खराब” थी। इसलिए यह कथन उस समय मृतका की मानसिक स्थिति पर संदेह उत्पन्न करता है।

चूँकि प्रद. प.-26 ही वह एकमात्र साक्ष्य था जिससे राजाराम पर 498A IPC के अंतर्गत क्रूरता का आरोप सिद्ध किया गया था, और यह साक्ष्य स्वयं उच्च न्यायालय द्वारा नकार दिया गया, तो अन्य कोई स्वतंत्र एवं ठोस साक्ष्य अभियोजन द्वारा प्रस्तुत नहीं किया गया जिससे दोषसिद्धि को बनाए रखा जा सके।

न्यायालय का निष्कर्ष:
प्रद. प.-11 में आरोपी राजाराम का उल्लेख नहीं है और उसने स्वयं अपनी पत्नी को अस्पताल पहुंचाया था, जिससे प्रथम दृष्टया उसकी भूमिका संदिग्ध प्रतीत नहीं होती। चूँकि एकमात्र दोषारोपणकारी साक्ष्य (प्रद. प.-26) अविश्वसनीय ठहराया गया है, इसलिए 498A के तहत उसकी सजा और दोषसिद्धि न्यायसंगत नहीं मानी जा सकती।

न्यायालय द्वारा उद्धृत प्रमुख विधिक सिद्धांत:
Evidence Act, 1872 की धारा 32(1) के अंतर्गत मृत्यु पूर्व कथन तभी प्रासंगिक होगा जब वह मृत्यु के कारण अथवा उससे संबंधित परिस्थितियों पर आधारित हो।

प्रमुख निर्णय जिनका अनुसरण किया गया:

  1. Laxman v. State of Maharashtra [2002] Supp. SCR 697
  2. Lakhan v. State of M.P. [2010] 9 SCR 705
  3. Jagbir Singh v. State of NCT Delhi (2019) 8 SCC 779

इन मामलों में यह स्पष्ट किया गया कि जब एक से अधिक मृत्यु पूर्व कथन हों, और उनमे विरोध हो, तो न्यायालय को प्रत्येक कथन की सत्यता, स्वैच्छिक प्रकृति, और सुसंगतता की पड़ताल करनी चाहिए। विशेष रूप से तब, जब एक कथन दूसरे से पूर्णतः विरोधाभासी हो।

निष्कर्ष:
सर्वोच्च न्यायालय ने अपील को स्वीकार करते हुए राजाराम की सजा और दोषसिद्धि को रद्द कर दिया। अभियोजन पक्ष राजाराम के विरुद्ध दहेज प्रताड़ना के आरोप को साबित नहीं कर सका।

अपील स्वीकार की गई; कोई व्ययादेश नहीं।

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